बाहर से बड़ा ही अपरिमित कठोर नजर आता हूं,
अंदर मां जैसी भावनाओं का दरिया रखता हूं!
नीव की ईट की तरह अपना अस्तित्व छुपा लेता हूं,
उस पर सुंदर मजबूत इमारत तैयार करता हूं!
पिता,भाई और हमसफर बनके कई किरदार निभाता हूं,
उन्हें आशीर्वाद, स्नेह व विश्वास के धागे में पिरोता हूं!
गुरु व दोस्त बनकर भी अपने दायित्व बख़ूबी निभाता हूं,
भावी जीवन के लिए तैयारकर, आशाओं के पंख़ लगाता हूं!
परिवार की खुशियों की खातिर खुद को ही भूल जाता हूं,
उनके उल्लास में इंद्रधनुष के रंगों से रंग भर देता हूं!
सभी की ख्वाहिशें पूरा करने को दिन-रात भटकता हूं,
दो वक्त की रोटी कमाने को,अपनों से ही दूर चला जाता हूं!
आजीवन अपार परेशानियों से जूझता रहता हूं,
मगर बगिया के फूलों को मुस्कुराहट से सीखता हूं!
हमें तो रोने का भी हक नहीं, पत्थर दिल कहलाता हूं,
मौन रहकर आंखों के सैलाब को कैद करना जानता हूं!
कुटुंब को प्रचुर प्यार के समुद्र से भर देता हूं,
कभी-कभी मैं भी प्यार की मरहम के लिए तरसता हूं!
हां मर्द हूं,मैं भी जीवन के उतार-चढ़ाव में थक सा जाता हूं,
मुझे भी कोई समझे ऐसे साथी का साथ चाहता हूं!!