Dec 27, 2010

महंगाई की मार

 
 
आदमी पर पड़ रही हैं महंगाई की मार,

आदमी को खा रही हैं , भ्रष्ट सरकार !


देश जाये भाड़ में कुएं में लोग बाग

नेताओ को चढ़ रहा हैं , कुर्सी का बुखार !


घोटाला नेताओ के लिए खेल  हो गया.

कानून बेवस्था भी इनके आगे फेल हो गया ?


हत्या बिन छपते नहीं  राजधानी  में अख़बार

गोली -बारी बच्चो का सा खेल हो गया ?


चोराहो पर रोज आते -जाते सब लोग

बिना बात रोज भुन- भुनाते सब लोग


मर  जाता कोई अभागा भीड़ में

अपनी -अपनी रह सब बढ़ जाते लोग


 कामनाए बढ़ रही हैं, बढ़ रही है भीड़

वासनाये बढ़ रही हैं , बढ़ रही हैं भीड़


कल के बगीचे श्मसान हो गए

ऊँचे घर वैश्या  की दुकान हो गये


भूले अपनी भाषा, तहजीब, और लिवाश,

लोग अंपने देश में अनजान हो गये .


गाँधी जी , सुभाष सदा रहते थे यहाँ ,

मीरा, दयान्द विष पीते थे यहाँ


कल बच्चे कैसे विशवास करेंगे

बुद्ध और विवेकानंद  कभी जीते थे यहाँ