आप का मुस्कुरा कर के वो नजरें झुकाना याद आता है,
जो सावन की काली घटा सी छाई रहती थी,
उन जूलफों का चेहरे से हटना याद आता है,
आप को छेड़ने की खातिर जो अक्सर गुनगुनाता था,
वो नगमा आशिकाना आज भी याद आता है,
आप का लड़ना झगड़ना और मुझसे रूठ कर जाना,
वो आप का रूठ कर खुद मान जाना याद आता है,