Jul 23, 2010

आपसा यहाँ कोई नहीं

शान -ऐ-महफ़िल  हो    आप

आपसा  यहाँ  कोई  नहीं

जानते  नहीं  आप  सबको  मगर

आपसे  अनजान  यहाँ  कोई  नहीं


हर  नज़र  एक  दुसरे  से  ये  पूछती  है

इतनी  खूबसूरती  क्या  तुमने  कही  देखि  है

छाया  है  नशा  आपका

होश  में  यहाँ  कोई  नहीं

शान -ऐ -महफ़िल  हो  आप

आपसा  यहाँ  कोई  नहीं


आपकी  तारीफ  के    अल्फाज़  कहा  से  लु  में

डर  है  कोई  गुस्ताखी  ना  हो  जाये  मुझ  से

कातिल  हो  आप  दिलो  के

जिंदा  यहाँ  कोई  नहीं

शान -ऐ -महफ़िल  हो  आप

आपसा  यहाँ  कोई  नहीं

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विजय प्रताप सिंह राजपूत

Jul 4, 2010

हाय ये महंगाई


महंगाई  ये  महंगाई  हाय ये  महंगाई

सुबह मेने नास्ते में सुखी रोटी ही खायी 

रात को डिनर में
मेंने खिचड़ी ही पकाई

ये  गयी ओ गयी तनखाह खो गयी 

सुबह बटुआ रिचार्जे  किया
मेंने तो चुराने आयी

महंगाई  ये  महंगाई  हाय ये  महंगाई.

एक बात कहू दिलदारा  महगाई ने सबको मारा 

अब मुस्किल हुआ गुजरा महगाई ने सबको मारा

सरकार की हेरा फेरी पागल ना बना दे सबको

सी. एन. जी. और डीजल ने मसला बिगाड़ा 

अब मुस्किल हुआ गुजरा महगाई ने सबको मारा
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विजय प्रताप सिंह राजपूत