अपने घूंघट से यूँ चेहरे को छुपाते क्यों हो ,
मुझ से शरमाते हो तो सामने आते क्यों हो ...
तुम कभी मेरे तरह कर भी लो इकरार -ऐ- मोहबत ,
प्यार करते हो तो फिर प्यार छुपाते क्यों हो ...
अश्क आँखों में मेरे देख के रोते क्यों हो ,
दिल भर आता है तो फिर दिल को दुखते क्यों हो ...
रोज़ मर मर के मुझे जीने को कहते क्यों हो ,
मिलने आते हो तो फिर लौट के जाते क्यू हो ...
अपने घूंघट से यूँ चेहरे को छुपाते क्यू हो ,
मुझ से शरमाते हो तो सामने आते क्यू हो ...
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विजय प्रताप सिंह राजपूत