तरस खाओ जवानी पर मेरे दिल से दोस्ती करलो
सजा क्यू दिल को देती हो सजा की क्या जरूरत है
चमकते चाँद से चेहरे को काली घटा की क्या जरूरत है
तुम अपनी सुर्ख लबों से हथेली चूमलो अपनी
लबों का सुर्ख बन जाए फिर हीना की क्या जरूरत है
अगर ये खूबसूरत हाथ मेरे गले का हार बन जाए
मरीजे इश्क को किसी और दवा की क्या जरूरत है
नशीली आंखों से मोहब्बत का जाम अगर पिला दो
मरीजे इश्क को फिर मधुशाला की क्या जरूरत है
हो जाये अगर मेहरबानी आपकी रेश्मी जुल्फो का
मरीजे इश्क को किसी मौसम की क्या जरूरत है
अगर ये खूबसूरत हाथ मेरे गले का हार बन जाए
ReplyDeleteमरीजे इश्क को किसी और दवा की क्या जरूरत है
.. वाह! क्या बात है!
धन्यवाद कविता जी
ReplyDeleteKya baat hai!
ReplyDeleteधन्यवाद
Delete😆😆😆👍🙏
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