अपने घूंघट से यूँ चेहरे को छुपाते क्यों हो ,
मुझ से शरमाते हो तो सामने आते क्यों हो ...
तुम कभी मेरे तरह कर भी लो इकरार -ऐ- मोहबत ,
प्यार करते हो तो फिर प्यार छुपाते क्यों हो ...
अश्क आँखों में मेरे देख के रोते क्यों हो ,
दिल भर आता है तो फिर दिल को दुखते क्यों हो ...
रोज़ मर मर के मुझे जीने को कहते क्यों हो ,
मिलने आते हो तो फिर लौट के जाते क्यू हो ...
अपने घूंघट से यूँ चेहरे को छुपाते क्यू हो ,
मुझ से शरमाते हो तो सामने आते क्यू हो ...
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विजय प्रताप सिंह राजपूत
बहुत ही भावपूर्ण रचना . बधाई
ReplyDeletenice bahot atchhi likha hai
ReplyDeleteachhi gazal ki taseer ... bahut khoob
ReplyDeletebahut hee sundar gazal ...maja aa gaya padhkar...badhai
ReplyDeleteaccha laga apko padhna
ReplyDeletebahut badhiyalagaaapki gazal vaise to sabhi prashanshniy hain par kuchh panktiyan jyada hi behtar lagi.bahut hi achhi post.
ReplyDeletepoonam
“धन्यवाद जी”
ReplyDeleteजनाब विजय प्रताप जी प्रयास अच्छा है ....
ReplyDeleteअगली बार टंकण की गल्तियाँ नहीं होनी चाहिए ....
धन्यवाद हरकीरत ' हीर' जी कोशिश करेंगे
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