शान -ऐ-महफ़िल हो आप
आपसा यहाँ कोई नहीं
जानते नहीं आप सबको मगर
आपसे अनजान यहाँ कोई नहीं
हर नज़र एक दुसरे से ये पूछती है
इतनी खूबसूरती क्या तुमने कही देखि है
छाया है नशा आपका
होश में यहाँ कोई नहीं
शान -ऐ -महफ़िल हो आप
आपसा यहाँ कोई नहीं
आपकी तारीफ के अल्फाज़ कहा से लु में
डर है कोई गुस्ताखी ना हो जाये मुझ से
कातिल हो आप दिलो के
जिंदा यहाँ कोई नहीं
शान -ऐ -महफ़िल हो आप
आपसा यहाँ कोई नहीं
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विजय प्रताप सिंह राजपूत
आपसा यहाँ कोई नहीं
जानते नहीं आप सबको मगर
आपसे अनजान यहाँ कोई नहीं
हर नज़र एक दुसरे से ये पूछती है
इतनी खूबसूरती क्या तुमने कही देखि है
छाया है नशा आपका
होश में यहाँ कोई नहीं
शान -ऐ -महफ़िल हो आप
आपसा यहाँ कोई नहीं
आपकी तारीफ के अल्फाज़ कहा से लु में
डर है कोई गुस्ताखी ना हो जाये मुझ से
कातिल हो आप दिलो के
जिंदा यहाँ कोई नहीं
शान -ऐ -महफ़िल हो आप
आपसा यहाँ कोई नहीं
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विजय प्रताप सिंह राजपूत
बेहद उम्दा ……………।बहुत ही खूबसूरत्।
ReplyDeleteVijay.........vahut achhi rachaa. Likhte raho.....
ReplyDeleteKabhi-kabhi hum bhi aayenge tumhen padhne.
Beautiful poetry and amazing words
ReplyDeleteआप सभी लोगों का दिल से शुक्रिया
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